श्रीमद् भागवत गीता के महान विचार - 2

मैं सभी प्राणियों को सामान रूप से देखता हूँ, ना कोई मुझे कम प्रिय है ना अधिक. लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूँ। ~ भगवान श्री कृष्ण

प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं करता। ~ भगवान श्री कृष्ण

सन्निहित आत्मा के अन्नत का अस्तित्व हैं, अविनाशी और अन्नत हैं, केवल भौतिक शरीर तथ्यात्मक रूप से खराब है, इसलिए हे अर्जुन लड़ते रहो। ~ भगवान श्री कृष्ण

अपने कर्म पर अपना दिल लगाए, ना की उसके फल पर। ~ भगवान श्री कृष्ण

जो कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है। ~ भगवान श्री कृष्ण

तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नहीं हैं, और फिर भी ज्ञान की बाते करते हो.बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं। ~ भगवान श्री कृष्ण

कभी ऐसा समय नहीं था जब मैं, तुम,या ये राजा-महाराजा अस्तित्व में नहीं थे, ना ही भविष्य में कभी ऐसा होगा कि हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाये। ~ भगवान श्री कृष्ण

कर्म मुझे बांधता नहीं, क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नहीं। ~ भगवान श्री कृष्ण

हम जो देखते हैं वो हम हैं, और हम जो हैं हम उसी वास्तु को निहारते हैं इसलिए जीवन मे हमेशा अच्छी और सकारत्मक चीज़ो को देखो और सोचें। ~ भगवान श्री कृष्ण

अपने परम भक्तों, जो हमेशा मेरा स्मरण या एक-चित्त मन से मेरा पूजन करते हैं, मैं व्यक्तिगत रूप से  उनके कल्याण का उत्तरदायित्व  लेता हूँ। ~ भगवान श्री कृष्ण

कर्म योग वास्तव में एक परम रहस्य है। ~ भगवान श्री कृष्ण

इंद्रियों की दुनिया मे कल्पना सुखो की शुरुआत हैं और अंत भी जो दुख को जन्म देता हैं, हे अर्जुन। ~ भगवान श्री कृष्ण

बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए बिना आसक्ति के काम करना चाहिए।  ~ भगवान श्री कृष्ण

जो व्यक्ति आध्यात्मिक जागरूकता के शिखर तक पहुँच चुके हैं, उनका मार्ग है निःस्वार्थ कर्म. जो भगवान् के साथ संयोजित हो चुके हैं उनका मार्ग है स्थिरता और शांति। ~ भगवान श्री कृष्ण


Jai Shree Krishna 🙏🙏


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