श्रीमद् भागवत गीता के महान विचार -3
प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं करता। ~ भगवान श्री कृष्ण
सन्निहित आत्मा के अन्नत का अस्तित्व हैं, अविनाशी और अन्नत हैं, केवल भौतिक शरीर तथ्यात्मक रूप से खराब है, इसलिए हे अर्जुन लड़ते रहो। ~ भगवान श्री कृष्ण
भगवान प्रत्येक वस्तु में है और सबके ऊपर भी। ~ भगवान श्री कृष्ण
अपने कर्म पर अपना दिल लगाए, ना की उसके फल पर। ~ भगवान श्री कृष्ण
सभी कार्य ध्यान से करो, करुणा द्वारा निर्देशित किए हुवे। ~ भगवान श्री कृष्ण
तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नहीं हैं, और फिर भी ज्ञान की बाते करते हो.बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं। ~ भगवान श्री कृष्ण
कर्म मुझे बांधता नहीं, क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नहीं। ~ भगवान श्री कृष्ण
कर्म योग वास्तव में एक परम रहस्य है। ~ भगवान श्री कृष्ण
इंद्रियों की दुनिया मे कल्पना सुखो की शुरुआत हैं और अंत भी जो दुख को जन्म देता हैं, हे अर्जुन। ~ भगवान श्री कृष्ण
यद्द्यापी मैं इस तंत्र का रचयिता हूँ, लेकिन सभी को यह ज्ञात होना चाहिए कि मैं कुछ नहीं करता और मैं अनंत हूँ। ~ भगवान श्री कृष्ण
जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते हैं। ~ भगवान श्री कृष्ण
वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है और “मैं” और “मेरा” की लालसा और भावना से मुक्त हो जाता है उसे शांती प्राप्त होती है। ~ भगवान श्री कृष्ण
मेरे लिए ना कोई घृणित है ना प्रिय. किन्तु जो व्यक्ति भक्ति के साथ मेरी पूजा करते हैं, वो मेरे साथ हैं और मैं भी उनके साथ हूँ। ~ भगवान श्री कृष्ण
मैं ऊष्मा देता हूँ, मैं वर्षा करता हूँ और रोकता भी हूँ, मैं अमरत्व भी हूँ और मृत्यु भी। ~ भगवान श्री कृष्ण
बुरे कर्म करने वाले, सबसे नीच व्यक्ति जो राक्षसी प्रवित्तियों से जुड़े हुए हैं, और जिनकी बुद्धि माया ने हर ली है वो मेरी पूजा या मुझे पाने का प्रयास नहीं करते। ~ भगवान श्री कृष्ण
जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है, मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ कर देता हूँ। ~ भगवान श्री कृष्ण
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Jai Shree Krishna
जय श्री कृष्णा
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