Detail information on Repo rate, SLR etc. in Hindi

Repo rate, SLR, Reverse repo rate, CRR, Deflation in Hindi

रेपो रेट, बैंक रेट, रिवर्स रेपो रेट (repo rate, bank rate and reverse repo rate) की शब्दावलियाँ (economics glossary) एक दूसरे से बहुत मिलती जुलती हैं। और किताबों, इन्टरनेट में जो परिभाषा (definitions) दी जाती है, उससे कुछ समझ पाना मुश्किल हो जाता है।

दैनिक आर्थिक कामकाज के लिए प्राय: कमर्शियल बैंकों को बड़ी रकम की जरूरत होती है । इसके लिए कमर्शियल बैंक जो विकल्प अपनाते हैं, उनमें सबसे सामान्य है केंद्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) से कर्ज लेना। इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें कुछ ख़ास दर पर ब्याज (interest) देना पड़ता है।

कमर्शियल बैंकों (commercial banks) को जब कभी फंड (fund) की कमी हो जाती है या कोई और शॉर्ट टर्म (short-term) लोन की जरूरत (necessity) होती है तो वे केंद्रीय बैंक (central bank) अर्थात् रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (reserve bank of India) से कैश उधार ले सकते हैं। रिजर्व बैंक (reserve bank of India) जब इन बैंकों को पैसा उधार देता है, तो कैश के बदले बैंकों से कुछ सिक्योरिटीज (securities) चाहता है, ताकि अगर भविष्य में कोई रिस्क (future-risk) हो तो इन सिक्योरिटीज (securities) से उसे पूरा किया जा सके। ऐसे में बैंक अपनी कुछ सिक्योरिटीज (securities) (आमतौर पर इनमें बॉन्ड्स (bonds) शामिल होते हैं) रिजर्व बैंक को इस शर्त के साथ बेच देते हैं कि पहले से तय किए गए समय पर वे अपनी सिक्योरिटीज को वापस खरीद लेंगे (they will buy back the securities)

बैंक इस तरह रिजर्व बैंक से जो पैसा उधार लेते हैं, उस पर रिजर्व बैंक उनसे कुछ ब्याज भी वसूलता है। जिस दर पर यह ब्याज वसूला जाता है, उसे ही रेपो रेट (repo rate) कहते हैं।

Repo rate is the rate at which the central bank of a country (RBI in case of India) lends money to commercial banks in the event of any shortfall of funds– Economic Times

रेपो रेट में कमी — अर्थात् ब्याज दर में कमी (Decrease in repo rate)

जब कभी रिजर्व बैंक रेपो रेट में कमी कर देता है तो कमर्शियल बैंकों को रिजर्व बैंक से कर्ज मिलने में आसानी हो जाती है और जब रेपो रेट को बढ़ा दिया जाता है, तो रिजर्व बैंक द्वारा दिया जाने वाला कर्ज महंगा हो जाता है। जैसा कि मैंने कहा कि रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाएगा और इसलिए बैंक अपनी ब्याज दरों में कमी करेंगे (किन दरों में कमी करेंगे? वही इंटरेस्ट रेट जो हम अथवा ग्राहकों को लोन लेने पर देना पड़ता है ) , ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके।

फलस्वरूप क्या होगा? (What will happen if repo rate is decreased)

1. रेपो रेट घटने से बैंक सस्ती दर पर हमें लोन दे सकेंगे.
2. सस्ती दर पर लोन लेकर हम नई-नई चमकीली नैनो खरीदेंगे.
3. व्यवसायी ढेर सारा पैसा उद्योग में लगायेंगे.
4. रोजगार ज्यादा हो जायेगा.
5. हम ज्यादा डिमांड करेंगे. मॉल्स में फिजूलखर्ची करेंगे, स्टाइल में घूमेंगे.
6. अधिक डिमांड के चलते शॉपकीपर सोचेंगे कि दाम बढ़ाने का इससे अच्छा मौका कुछ नहीं हो सकता. और सभी चीजों का दाम बढ़ जायेगा.

Conclusion:-– रेपो रेट में कमी से अंततः वस्तुओं का मूल्य बढ़ता है अर्थात् inflation होता है.

रेपो रेट में वृद्धि — अर्थात् ब्याज दर में वृद्धि (Increase in repo rate)

रेपो दर में बढ़ोतरी का सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना महंगा हो जाएगा। साफ है कि बैंक दूसरों को (यानी हमको) कर्ज देने के लिए जो ब्याज दर तय करते हैं, वह भी उन्हें बढ़ाना होगा और फलस्वरूप बाजार में तरलता घट जाती है (कब घटती है?>> जब रिज़र्व बैंक रेपो रेट बढ़ा देते हैं तो बैंकों को रिजर्व बैंक से कर्ज मिलने में मुश्किल हो जाती है और इसका बदला वे हमसे लेते हैं )

फलस्वरूप क्या होगा? (What will happen if repo rate is increased)
1. जनता कम लोन ले पाती है, बाजार गिर जाता है (market will fall down), पैसे की कमी हो जाती है
2. व्यवसायी कम लोन ले पायेंगे. बिज़नस का विस्तार नहीं कर पायेंगे. कोई नया इन्वेस्टमेंट (investment) नहीं होगा.
3. फिर क्या होगा? हम-आप जैसे लोग बेरोजगार ही रह जायेंगे. जो नौकरी में हैं, वो भी निकाल दिए जायेंगे.
4. आपका खर्च घट जायेगा. दो लीटर दूध के बदले आप एक ही लीटर दूध खरीदेंगे. शेविंग क्रीम के बदले साबुन से ही काम चला लेंगे.
5. कम डिमांड करेंगे (less demand)
6. और आपके कम डिमांड करने के चलते, शॉपकीपर शेविंग क्रीम का दाम घटा देंगे. मेरा मतलब सभी वस्तुओं का मूल्य गिर जायेगा.

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