श्रीमद् भागवत गीता के महान विचार - 6
क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? अात्मा ना पैदा होती है न मरती है। ~ भगवान श्री कृष्ण परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा अपना-पराया मन से मिटा दो फिर सब तुम्हारा है तुम सबके हो। ~ भगवान श्री कृष्ण न यह शरीर तुम्हारा है न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल वायु पृथ्वी अाकाश से बना है अौर इसी में मिल जायेगा। परन्तु अात्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो? ~ भगवान श्री कृष्ण इसलिए हे पार्थ! इन यज्ञ दान और तपरूप कर्मों को तथा और भी सम्पूर्ण कर्तव्यकर्मों को आसक्ति और फलों का त्याग करके अवश्य करना चाहिए यह मेरा निश्चय किया हुआ उत्तम मत है ~ भगवान श्री कृष्ण क्योंकि शरीरधारी किसी भी मनुष्य द्वारा सम्पूर्णता से सब कर्मों का त्याग किया जाना शक्य नहीं है इसलिए जो कर्मफल त्यागी है वही त्यागी है- यह कहा जाता है ~ भगवान श्री कृष्ण ज्ञाता (जानने वाले का नाम 'ज्ञाता' है। ज्ञान (जिसके द्वारा जाना जाए, उसका नाम 'ज्ञान